नवरात्रि में कलश स्थापना का तरीका और माता के नौ रूप
नवरात्रि

(नवरात्रि कलश स्थापना ) नवरात्रि मां दुर्गा के सभी नौ रूपों के पूजन औआराधना का त्यौहार है। इसका अभिप्राय नौ रातों से है। यह समय बहुत ही पवित्र माना जाता है। इस समय भक्तगण नौ दिनों का व्रत रखते हैं। इस दौरान माता के सभी रूपों की पूजा की जाती है और आज हम आपको नवरात्रि में कलश स्थापना करने का तरीका और माता के नौ रूपों के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं।

माता दुर्गा के सभी नौ रूपों की पूजा अर्चना उनके भक्त बड़े ही विधि विधान से करते हैं।

भक्तगण अपने घरों में नवरात्रि में कलश स्थापना करते हैं जिसमें अखंड ज्योति की स्थापना की जाती है और दुर्गा सप्तशती का पाठ किया जाता है।

नवरात्रि के पर्व पर बड़े बड़े पंडाल लगाए जाते हैं जिसमें माता के विभिन्न रूपों को दर्शाया जाता है और देश भर में अलग अलग स्थानों पर मेले लगते हैं।

नवरात्रि वर्ष में कितनी बार मनाई जाती है (नवरात्रि कलश स्थापना )

वर्ष भर में चार बार नवरात्रि का पर्व आता है। यह ऋतुओं के परिवर्तन के समय आता है। शरद ऋतु में पड़ने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं जो की आश्विन माह में आती है और वसंत ऋतु में आने वाली नवरात्रि को वासंतिक नवरात्र कहते हैं जो हिंदी माह चैत्र में मनाई जाती है।

इसके अलावा दो नवरात्रि और भी मनाई जाती हैं जो कि क्रमशः आषाढ़ और माघ महीने में मनाई जाती है।
चैत्र और आश्विन मास में मनाई जाने वाली नवरात्रि में माता के नौ रूपों की उपासना की जाती है वहीं आषाढ़ और माघ महीने में मनाई जाने वाली नवरात्रि जिसे हम गुप्त नवरात्रि कहते हैं इसमें देवी के दश महाविद्या स्वरूप की उपासना की जाती है।

ऐसा कहा जाता है कि गुप्त नवरात्रि में ज्यादातर तांत्रिक सिद्धियों के लिए पूजा की जाती है और मान्यता है की पूजा जितनी ज्यादा गोपनीय रखी जायेगी पूजा में सफलता उतनी ही ज्यादा मिलेगी


इसीलिए इसकी जानकारी कम ही लोगों को होती है और इन्हे गुप्त नवरात्रि भी कहा जाता है।
इसलिए मुख्यतः वासंतिक और शारदीय नवरात्रि ही धूमधाम से मनाई जाती है।

नवरात्रि में पूजा और कलश स्थापना कैसे करते हैं

नवरात्रि में पूजा और कलश स्थापना विधि (नवरात्रि कलश स्थापना )

( नवरात्रि कलश स्थापना )

इस दिन प्रातः काल में शुभ मुहूर्त को देखते हुए कलश स्थापना की जानी चाहिए।

कलश स्थापना पूर्व दिशा में, उत्तर दिशा में या पूर्व उत्तर के ईशान कोण की दिशा में करनी चाहिए।

कलश स्थापना वाले स्थान को गंगा जल छिड़क कर साफ सफाई करना चाहिए।

जिस स्थान पर कलश की स्थापना हो जाती है फिर वहां से कलश को बिलकुल भी हिलाना डुलना अथवा अन्यत्र रखना नहीं चाहिए।

कलश स्थापना के लिए मिट्टी का एक पात्र लेकर उसमें शुद्ध मिट्टी रख कर और उसमे जौ बोना चाहिए।
फिर उसके ऊपर कलश स्थापित करना चाहिए।

मिट्टी के कलश में गंगा जल मिला हुआ स्वच्छ जल रखना चाहिए और उसमें सिक्का, अक्षत, सुपारी, दो लौंग, दूब घास डालना चाहिए।
कलश का मुख मौली से बांधना चाहिए।
कलश के ऊपर एक नारियल जिसे लाल चुनरी या वस्त्र में मौली से बांधना चाहिए।
आम के पत्तों को कलश पर लगाने के बाद नारियल उस पर रखना चाहिए।

कलश स्थापना मंत्रोच्चारण के साथ ही करनी चाहिए।

पूजा की चौकी पर लाल रंग का नया कपड़ा बिछाना चाहिए और उसपर माता की तस्वीर रखना चाहिए। उसे फूलों से सुशोभित करना चाहिए।

जौ वाले पात्र और कलश को माता की चौकी के पास स्थापित कर देना चाहिए
स्थापना हो जाने के बाद मां भगवती के पूजन से शुरुवात करते हुए (प्रथम दिवस) माता भगवती के रूप मां शैलपुत्री का पूजन और वंदन करना चाहिए।

इस प्रकार नवरात्रि में कलश स्थापना करते हुए माँ अम्बे की पूजा अर्चना की विधि विधानपूर्वक की जाती है

नवरात्रि में माता के सभी रूपों के नाम

  • मां शैलपुत्री
  • मां ब्रह्मचारिणी
  • मां चंद्रघंटा
  • मां कूष्मांडा
  • मां स्कंदमाता
  • मां कात्यायनी
  • मां कालरात्रि
  • मां महागौरी
  • मां सिद्धिदात्री

इन दिनों प्रत्येक दिन माता दुर्गा के अलग अलग रूपों की उपासना की जाती है।

मां शैलपुत्री

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं शैलपुत्र्यै नम:

वृषभ यानी बैल पर सवार मां शैलपुत्री के दाएं हाथ में त्रिशूल तथा बाएं हाथ में कमल सुशोभित रहता है। यह देवी सती के नाम से भी जानी जाती हैं।

शैल का क्या अर्थ है शैल का अर्थ पर्वत है और माता ने शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लिया और वह शैलपुत्री के रूप में विख्यात हुईं।

मां ब्रम्हचारिणी

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं ब्रह्मचारिण्यै नम:

नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रम्हचारिणी की उपासना की जाती है। इनके दाहिने हाथ में जप की माला रहती है और बाएं हाथ में कमंडल रहता है।

ब्रम्ह का अर्थ है तपस्या और चारिणी का अर्थ है आचरण करने वाली इस प्रकार ब्रम्हचारिणी का अर्थ है तप का आचरण करने वाली।

भगवान शिव को पाने के लिए माता ने कठोर तप किया और यह तपस्या हजारों वर्षों तक चली इस कारण माता को ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है


माता दुर्गा का यह रूप भक्तों को अनंत फल प्रदान करने वाला है।
इनकी उपासना से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार और संयम की वृद्धि होती है।

मां चंद्रघंटा

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चन्द्रघंटायै नम:

मां चंद्रघंटा की उपासना नवरात्रि के तीसरे दिन की जाती है।
चंद्रघंटा का अर्थ है चांद की तरह चमकने वाली। इनके मस्तक में घंटे के आकार का अर्धचंद्र और शरीर का रंग स्वर्ण के समान चमकीला है।

माता चंद्रघंटा के दस हाथ हैं और इन दसों हाथों में खड्ग, शस्त्र तथा बाण आदि अस्त्र विभूषित हैं।
मां का यह स्वरूप परम शांतिदायक और कल्याणकारी होता है। इनकी पूजा अर्चना करने से सभी पाप और बाधाऐं दूर हो जाती हैं।

माँ कूष्मांडा

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कूष्मांडायै नम:

चौथे दिन माता कूष्मांडा की उपासना की जाती है।
कहा जाता है कि जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था तो कूष्मांडा माता ने ब्रम्हांड की रचना की थी। तब से यह माना जाता है कि पूरा जगत इनके पैर में है।


कूष्मांडा माता के शरीर की कांति सूर्य के समान दिव्य है। माता कूष्मांडा की आठ भुजाएं हैं। इसलिए ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी विख्यात हैं। अष्टभुजा देवी के हाथों में कमंडल धनुष बाण, कमल पुष्प, अमृत कलश, चक्र तथा गदा है और आठवें हाथ में जप माला है। माता का वाहन सिंह है। कूष्मांडा माता की उपासना करने से भक्तों के समस्त रोग मिट जाते हैं तथा आयु यश बल की वृद्धि होती है।

मां स्कंदमाता

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं स्कंदमातायै नम:

नवरात्रि के पांचवे दिन स्कंदमाता की उपासना की जाती है। पौराणिक शास्त्रों के अनुसार भगवान स्कन्द कुमार कार्तिकेय के नाम से जाने जाते थे।

इन्ही भगवान स्कंद की माता होने कारण मां दुर्गा के इस स्वरूप को स्कंद माता कहा जाता है।

इनकी उपासना करने से भक्तों की समस्त इच्छाएं पूर्ण हो जाती हैं।

मां कात्यायनी

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कात्यायनायै नम:

माता का छठवां रूप मां कात्यायनी का है जिसका अर्थ है कात्यायन आश्रम में जन्मी।

मां का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है, कहा जाता है कि महर्षि कात्यायन की इच्छा थी कि मां भगवती उनके घर जन्म लें और इसके लिए उन्होंने बहुत वर्षों तक कठिन तपस्या की थी।

तब मां भगवती ने उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर उनकी प्रार्थना स्वीकार कर ली थी।

इस कारण ये मां कात्यायनी कहलाई।

मां कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला है और इनकी चार भुजाएं हैं।

इनका वाहन सिंह है। माता कात्यायनी की भक्ति और उपासना करने से अर्थ, धर्म, काम और मोक्ष प्राप्त किया जा सकता है

मां कालरात्रि

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं कालरात्र्यै नम:

मां भगवती का सातवां रुप हैं मां कालरात्रि जिसका अर्थ है काल का नाश करने वाली।

नवरात्रि के सातवें दिन मां दुर्गा की सातवीं शक्ति की उपासना की जाती है।


कालरात्रि माता के शरीर का रंग घने अंधकार की तरह एकदम काला होता है।

इनके सर के बाल बिखरे हुए हैं, गले में विद्युत की तरह चमकने वाली माला है।

माता के तीन नेत्र हैं और इन माता का वाहन गधा है।

मां महागौरी

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं महागौर्ये नम:

महागौरी मां भगवती का आठवां रुप हैं यह गौर वर्ण की सफेद रंग वाली हैं।

दुर्गा पूजा के आठवें दिन महागौरी की उपासना व पूजा अर्चना की जाती है।

माना जाता है कि देवी के इस रूप में सभी राक्षस, भूत प्रेत, पिशाच आदि

इस प्रकार की सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जाओं का नाश होता है।

इनकी शक्ति अमोघ और सदा फलदायनी है।

महागौरी की उपासना से भक्तों के सभी प्रकार के क्लेश दूर हो जाते हैं।

मां सिद्धिदात्री

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं सिद्धिदात्यै नम:

नवें दिन मां सिद्धिदात्री की उपासना की जाती है, ये माता दुर्गा का नवां शक्ति रूप है।

इनके नाम का अर्थ है सर्वसिद्धि देने वाली। सिद्धिदात्री मां सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान शिव ने सिद्धिदात्री माता की कृपा से ही ये सारी सिद्धियां प्राप्त की थीं।


इनकी अनुकंपा से ही भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ था और

इसी कारण से भगवान शिव अर्धनारीश्वर नाम से प्रसिद्ध हुए।

मां सिद्धिदात्री चार भुजाओं वाली हैं और इनका आसन कमल पुष्प पर है।

मां सिद्धिदात्री की कृपा से भक्तों के सारे दुख दूर हो जाते हैं।

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माता के भजन https://youtu.be/REGMVYL_zlk

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Disclaimer

यहां उपलब्ध जानकारी सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है यहां यह बताना जरूरी है कि यह लेख किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


1 Comment

दुर्गा माता की आरती - websansar.in · September 26, 2022 at 10:19 am

[…] यह भी पढ़ें माता के नौ रूप कौन से हैं और कैसे करें क… […]

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