दीपावली त्यौहार क्यों मनाया जाता है?
दीपावाली प्रकाश और समृद्धि का त्योहार है

दीपावली त्यौहार क्यों मनाया जाता है? दिवाली त्यौहार क्या होता है? Why do we celebrate Diwali? What is Diwali festival? दीपावली में माँ लक्ष्मी की पूजा विधि और दिवाली शुभ महूर्त 2023 ( Worship method of Goddess Lakshmi in Deepawali and Diwali Shubh Muhurat 2023 ) ( Holiday abroad on Diwali )

दीपावाली प्रकाश और समृद्धि का त्योहार है जो मुख्यतः हिंदुओं, सिखों, जैनियों और बौद्धों द्वारा मनाया जाता है। यह हिंदुओं के लिए सबसे महत्वपूर्ण शुभ समयों में से एक है।
दिवाली कार्तिक मास की अमावस्या की शाम को मनाई जाती है। दिवाली से जुड़ी रस्में प्रकृति में काफी हद तक प्रतीकात्मक हैं।
दिवाली से जुड़े कई रीति-रिवाज हैं जैसे दीया जलाना पूरे घर में रोशनी करना, बच्चों को उपहार देना, नए वस्त्र पहनना, माता लक्ष्मी की पूजा करना, पटाखे जलाना आदि।
इस दिन घरों में मुख्य द्वार के सामने या आंगन में अथवा छत पर रंगोली बनाई जाती है और उसको सुंदर फूलों और दीयों से सजाया जाता है।

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कई हफ्ते पहले शुरू हो जाती हैं तैयारियां

कई हफ्तों पहले से ही इस पर्व की तैयारी शुरू हो जाती है, लोग अपने घरों, कार्यालयों आदि की रंगाई पुताई और साफ सफाई में लग जाते हैं। घरों की मरम्मत और सफाई करवाने लगते हैं।
लोग बाजारों में अपनी दुकानों को साफ सुथरा और सजावट करते हैं। बाजारो में चहल-पहल और रौनक पहले से काफी बढ़ जाती है।
दिवाली के कुछ दिनों पहले ही घर और बाजार सभी साफ सुथरे और सजे धजे हो जाते हैं।

दीपावली तिथि 2023 ( Deepavali date )

( हिंदी कैलेंडर के अनुसार दीपावली की तारीख )

यह वर्ष की सबसे अंधेरी रात को पड़ता है जब आकाश में चंद्रमा नहीं होता है। इसलिए इसको दीपोत्सव अर्थात दीपों का उत्सव भी कहा जाता है।

इस साल दिवाली का त्यौहार 24 अक्टूबर 2022 दिन सोमवार को मनाया जाएगा। क्योंकि इस त्यौहार की गणना हिंदू कैलेंडर के अनुसार की जाती है इसलिए यह हर वर्ष अलग-अलग तारीखों पर मनाया जाता है।

प्रमुखता से खरीदारी की जाती है

दीपावाली साल भर में खरीददारी का त्यौहार माना जाता है। इस दौरान लोग महंगी वस्तुएं जैसे सोना, चांदी, गहने आभूषण, गाड़ियां, परिवार के लिए कपड़े, किचन के उपकरण और बर्तन आदि जरुरत की वस्तुएं तथा साज सज्जा के सामान इत्यादि प्रमुखता से खरीदते हैं। और दीपावाली वाले दिन लोग अपने दोस्तों और रिश्तेदारों को मिठाई और dry fruits गिफ्ट करते हैं।

दीपावली पर विदेशों में भी अवकाश ( Holiday abroad on Diwali )

( दीपावली पर विदेशों में भी अवकाश ) ( दीपावली त्यौहार ) Deepavali 2023 ( माँ लक्ष्मी की पूजा विधि ) ( Deepavali 2023 )

भारत वर्ष को पर्व और त्योहारों का देश भी कहा जाता है। जिसमें दीपावाली देश में हिंदुओं का एक मुख्य त्यौहार माना जाता है। इस त्यौहार पर देश भर में धूम रहती है।

इसकी प्रसिद्धि का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी जैसे कि मलेशिया, नेपाल, सिंगापुर, श्रीलंका, बांग्लादेश आदि देशों में भी इस दिन को अवकाश रहता है।

सुदूर अमेरिका में भी इसके लिए पिछले वर्ष 2021 में एक विधयेक पेश किया गया था। यदि यह विधेयक पास होता है तो वहां भी दीपावली पर अवकाश होने लगेगा।

दीपावली क्यों मनाते हैं? Why celebrate Diwali?

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इसके बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं

दीपावली क्यों मनाते हैं?

भगवान श्री राम की इस दिन अयोध्या वापसी हुई थी

भगवान श्री राम जी की अयोध्या वापसी की खुशी में दीपोत्सव

दीपावाली का संबंध प्रभु श्री राम जी से है, इस दिन भगवान श्री रामचंद्र चौदह वर्ष का वनवास खत्म कर माता सीता और भाई लक्ष्मण जी के साथ अयोध्या वापस आए थे।
इसी खुशी में नगर वासियों ने उनके स्वागत में अपने घरों में दीप प्रज्ज्वलित किया था तभी से हर साल यह पर्व मनाया जाने लगा।

भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया

भगवान श्री कृष्ण जी द्वारा नरकासुर का वध

भगवान श्री कृष्ण ने सोलह हजार कन्याओं को नरकासुर के बंधन से मुक्त कराया था और नरकासुर का अंत चतुर्दशी के दिन किया था।
ऐसा कहा जाता है कि नरकासुर को यह वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु सिर्फ की स्त्री के ही हाथों से होगी इसलिए भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा को अपना सारथी बनाकर उसका वध किया था।
इस दिन के बाद से दीपावली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी अर्थात छोटी दीपावाली मनाई जाती है।

महाभारत काल से जुड़ी हुई है दीपावली की कहानी

पांडवों का हस्तिनापुर आगमन हुआ था

दीपावली पर्व की मनाए जाने की परंपरा महाभारत काल से जुड़ी हुई है।
ऐसा माना जाता है अपने मामा शकुनि की कुटिलता की वजह से अपना सारा राजपाट जुएं में हार जाने के बाद पांडव कार्तिक मास की अमावस्या को अपना बारह वर्ष का अज्ञातवास पूरा करके वापस हस्तिनापुर लौटे थे।

पांडवों के वापस आने की वजह से नगर वासियों ने दीप जलाकर खुशी मनाई थी।
उसके बाद से हर वर्ष इस त्यौहार को मनाने की परंपरा चल पड़ी।

माता लक्ष्मी का जन्मदिन

माँ लक्ष्मी का जन्म समुद्र मंथन में हुआ था
माँ लक्ष्मी का जन्म समुद्र मंथन में हुआ था

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार कार्तिक मास की अमावस्या को समुद्र मंथन में इस दिन माता लक्ष्मी का जन्म हुआ था। इसलिए इसदिन इनकी पूजा करने का विधान है और इसी की खुशी घरों में रोशनी करके इनका जन्मदिन मनाया जाता है और पूजा करी जाती है।

भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी की रक्षा की

भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को राजा बली से मुक्त कराया था
भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी को राजा बली से मुक्त कराया था

ऐसी मान्यता है कि भगवान विष्णु ने अपने पांचवे अवतार वामन अवतार में कार्तिक मास की अमावस्या को माता लक्ष्मी को राजा बली की बंदीगृह से छुड़ाया था। और फिर उसके बाद से इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा का विधान शुरू हुआ।

बंगाल में काली मां की पूजा

माता काली ने रक्त बीज जैसे राक्षस का संहार इसी दिन किया था।
माता काली ने रक्त बीज जैसे राक्षस का संहार इसी दिन किया था।

पश्चिम बंगाल, उड़ीसा और असम में इस दिन मां काली की पूजा की जाती है। मान्यता है कि इस दिन काली मां चौंसठ हजार योगनियों के साथ प्रकट हुई थीं और उन्होंने रक्त बीज जैसे राक्षस का संहार किया था। विशेष सिद्धि प्राप्ति के लिए तांत्रिक भी मां काली की उपासना करते हैं।

बौद्ध धर्म में दीपावली का महत्व

भगवान बुद्ध जी की कपिलवस्तु वापसी इसी दिन हुई थी
भगवान बुद्ध जी की कपिलवस्तु वापसी इसी दिन हुई थी

ऐसा कहते हैं कि भगवान बुद्ध कार्तिक अमावस्या के दिन काफी वर्षों के बाद अपनी जन्मभूमि कपिलवस्तु शिक्षा ग्रहण करके वापस लौटे थे। उनके वापस आने की खुशी उनके राज्य के निवासियों ने उनके स्वागत में कपिलवस्तु को लाखों दीपों से सजाया था।

जैन धर्म में विशेष महत्व

इसी दिन स्वामी महावीरजी को निर्वाण प्राप्ति हुई थी
इसी दिन स्वामी महावीरजी को निर्वाण प्राप्ति हुई थी

जैन धर्म में भी यह दिन बेहद खास महत्व रखता है क्योंकि इसीदिन जैन धर्म के संस्थापक स्वामी महावीर तीर्थंकर जी ने निर्वाण प्राप्त किया था। कठिन व्रत और तप करके उन्हे निर्वाण प्राप्ति हुई थी। जैन धर्म का विस्तार उन्हीं के द्वारा किया गया था। यह दिन जैन धर्म में बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

बंदी छोड़ दिवस पर सिख धर्म में उत्सव

सिखों के छठे गुरु श्री हरगोबिंद साहिब जी इस दिन मुगल शासक जहांगीर की कैद से मुक्त हुए थे
सिखों के छठे गुरु श्री हरगोबिंद साहिब जी इस दिन मुगल शासक जहांगीर की कैद से मुक्त हुए थे

इस दिन का सिख समुदाय में विशेष महत्व इसलिए होता है क्योंकि इसी दिन सिक्खों के छठे गुरु श्री हरगोबिंद साहिब जी को मुगल शासक जहांगीर की कैद से रिहा किया गया था। तभी से इस दिन को बंदी छोड़ दिवस के रूप में दीपावली की तरह से ही मनाया जाता है। साथ ही पवित्र स्वर्ण मंदिर के निर्माण कार्य की शुरुवात इसी दिन हुई थी। इस दिन सिख समुदाय के लोग अपने घरों और गुरुद्वारों को रोशन करते हैं और एक दूसरे को उपहार देते हैं तथा परिवार के साथ समय व्यतीत करते हैं।

महाराजा विक्रमादित्य का राज्याभिषेक

कार्तिक अमावस्या के दिन ही महाराज विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था
कार्तिक अमावस्या के दिन ही महाराज विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था

एक कथा यह भी है कि कार्तिक अमावस्या के दिन ही महाराज विक्रमादित्य का राज्याभिषेक हुआ था, वे प्राचीन भारत के महान सम्राट थे। जिन्हे अपनी उदारता और साहस के लिए सदैव ही जाना जाता है। इसी खुशी में वहां के नागरिकों ने दीप जलाकर खुशी मनाई थी। तभी से इस महान शासक के सम्मान में यह पर्व मनाया जाने लगा।

महर्षि दयानन्द का निर्वाण दिवस

महर्षि दयानंद जी का निर्वाण दिवस कार्तिक अमावस्या के दिन होता है
महर्षि दयानंद जी का निर्वाण दिवस कार्तिक अमावस्या के दिन होता है

आर्य समाज की स्थापना करने वाले महर्षि दयानंद जी ने कार्तिक के महीने की अमावस्या के दिन निर्वाण प्राप्त किया था। इन्होंने समाज में व्याप्त अनेक कुरीतियों आडंबरों और अंधविश्वास के खिलाफ समाज के लोगों को जागरुक किया।
उस दिन से इसे दीवाली के रूप में मनाया जा रहा है।

दीपावली पर्व के सन्देश

प्रकाश की पर्व तो है ही लेकिन साथ ही यह आर्थिक क्षेत्र में अपनी बुराइयों को छोड़ कर अच्छाइयां ग्रहण करने का पर्व भी है।
अपने धन का सद्बुद्धि के साथ खर्च करना, उपयोगी कार्यों में लगाना और आवश्यकतानुसार बजट बनाकर उसके अनुसार खर्च करना ये भी दीपावली पर्व के सन्देश हैं।

दीपावली की पूजा विधि

( माँ लक्ष्मी की पूजा विधि ) ( Deepavali 2023 )

हम सभी को पता है कि दीपावली को माता लक्ष्मी भगवान गणेश का पर्व माना गया है।
दीपावली पर मां लक्ष्मी मां सरस्वती और भगवान श्री गणेश जी की पूजा की जाती है। इस दिन इन तीनों देवी देवताओं की विशेष पूजा अर्चना कर उनसे सुख समृद्धि, बुद्धि, तथा घर में सुख शांति और तरक्की का वरदान मांगा जाता है।
माता लक्ष्मी को धन की देवी कहा गया है और इस दिन हम माता लक्ष्मी से घर की सुख शांति, धन धान्य और समृद्धि की प्रार्थना करते हैं।
दिवाली पर देवी देवताओं की पूजा में कुछ विशेष बातों का ध्यान रखा जाता है।

दीपावली पूजा हेतु पूजन सामग्री

दीपावली पूजा के सामान की ज्यादातर चीजें घर पर ही मिल जाती हैं जो नहीं उपलब्ध होती हैं उन्हें बाजार से पहले ही लाकर रख लिया जाता है।
लक्ष्मी गणेश और सरस्वती जी की फोटो या मूर्ति, रोली, कुमकुम, पान चावल, पान, सुपारी, लौंग और इलायची, धूप कपूर, अगरबत्तियां, मिट्टी तथा तांबे के दीपक, रुई, कलावा (मौली), नारियल, शहद, दही, गंगाजल, गुड़, धनिया, फल, फूल, जौ, गेंहू, दूर्वा, चंदन, सिंदूर, घृत, पंचामृत, दूध, मेवे, खील बताशे, गंगाजल, यज्ञोपवीत ( जनेऊ), श्वेत वस्त्र, इत्र, चौकी, कलश, कमल गट्टे की माला, शंख, आसन, थाली चांदी का सिक्का, देवी देवताओं के प्रसाद हेतु मिष्ठान (बिना चांदी वर्क का)।

लक्ष्मी गणेश पूजन विधि

सबसे पहले एक चौकी पर सफेद वस्त्र या लाल वस्त्र बिछाकर उस पर मां लक्ष्मी गणेश जी और माता सरस्वती की मूर्ति या प्रतिमा को विराजमान करें। उसके बाद हाथ में पूजा के जल पात्र से थोड़ा सा जल लेकर उसे तस्वीर या प्रतिमा पर थोड़ा-थोड़ा छिड़कें।

बाद में इसी तरह स्वयं को और पूजा के आसन पर भी थोड़ा सा जल छिड़क कर के पवित्र कर लें।

इसके बाद मां पृथ्वी को प्रणाम करके क्षमा प्रार्थना करते हुए अपने आसन पर बैठ जाएं।

उसके बाद
ओम केशवाय नमः
ॐ नारायणाय नमः
ॐ माधवाय नमः

कहते हुए गंगाजल से आचमन करें

ध्यान व संकल्प विधि

इस पूरी प्रक्रिया के बाद मन को शांत करके आंखें बंद करके मन ही मन भगवान को प्रणाम करें
इसके बाद हाथ में जल लेकर के पूजा का संकल्प करें।
संकल्प के लिए हाथ में जल पुष्प और अक्षत ले लें
साथ ही उसमें ₹1 का सिक्का भी रख लें।
इन सभी को हाथ में रखते हुए और अपना नाम बोलते हुए संकल्प करें कि मैं अमुक व्यक्ति अमुक स्थान पर मां लक्ष्मी सरस्वती और गणेश जी की पूजा करने जा रहा हूं जिससे मुझे शास्त्रों के अनुसार फल प्राप्त हो।

पूजन शुरू करें

इसके बाद सबसे पहले भगवान गणेश व गौरी जी का पूजन करना चाहिए।
तत्पश्चात कलश पूजन करें फिर नौ ग्रहों का पूजन करें।
हाथ में अक्षत और फूल ले लीजिए और नवग्रह स्रोत का पाठ करें।

पूरी प्रक्रिया मौली लेकर गणपति माता लक्ष्मी व सरस्वती को अर्पण कर और स्वयं के हाथ पर भी बंधवा लें।
सभी देवी देवताओं को तिलक लगाकर के खुद को भी तिलक लगाएं।

मिठाई और फल का भोग लगाते हुए मां को श्रृंगार सामग्री अर्पण करें।
महालक्ष्मी की पूजा आरंभ करें सबसे पहले भगवान गणेश जी और लक्ष्मी जी की पूजा करें उनकी कथा कहें और आरती करें।
उनकी तस्वीर या प्रतिमा के आगे सात ग्यारह अथवा इक्कीस दीपक जलाएं।
श्री सूक्त लक्ष्मी सूक्त और कनक धारा स्रोत का पाठ करें
इस तरह से आपकी पूजा पूर्ण होती है।
जैसा की माना जाता है कि पूजा करते हुए वस्तुओं का आभाव भले ही हो जाए पर भाव का आभाव नहीं होना चाहिए तो बस जितनी श्रद्धा और विश्वास के साथ आप पूजा करेंगे उतना ही अधिक आशीर्वाद आपको मिलेगा।

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