पारिजात वृक्ष का हिंदू धर्म में बहुत ही विशेष और पवित्र स्थान है।
कहते हैं कि परिजात वृक्ष की उत्पत्ति समुद्र मंथन के दौरान हुई थी और यह परिजात वृक्ष देवताओं को मिला था।
परिजात वृक्ष को प्राजक्ता, परिजात, हरसिंगार, शेफालिका, शेफाली, शिउली नामों से भी जाना जाता है।
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पारिजात वृक्ष कहाँ स्थित है
परिजात वृक्ष भारत में उत्तर प्रदेश राज्य के बाराबंकी जिला के अंतर्गत किंतूर गांव से आगे बरौलिया नामक गांव में स्थित है।
पृथ्वी पर इकलौता वृक्ष है पारिजात
( पृथ्वी पर कितने पारिजात के वृक्ष हैं? क्या पारिजात का वृक्ष इकलौता है? Parjiat tree, Paarijaat tree )
बाराबंकी के बरौलिया में स्थित इस वृक्ष के और कहीं होने का प्रमाण अभी तक नहीं पाया गया है।
वनस्पति शास्त्रियों के अनुसार इस वृक्ष में फल अथवा बीज नहीं होते हैं और इसकी कलम से दूसरा वृक्ष नहीं बन सकता है।
पारिजात वृक्ष की कहानियां
भगवान कृष्ण द्वारा स्वर्ग लोक से लाया गया
जिसके अनुसार एक बार देव ऋषि नारद जी श्री कृष्ण जी से मिलने धरती पर पधारे थे जब नारद जी श्री कृष्ण जी से मिले तो श्री कृष्ण जी का मुख देख कर नारद जी बहुत प्रसन्न हुए और हाथों में बहुत ही सुन्दर परिजात के पुष्प थे वो उन्होंने कृष्ण जी को भेंट में दे दिए।
श्री कृष्ण जी ने वे पुष्प साथ मैं बैठी अपनी पत्नी रुकमणी को सौंप दिए लेकिन जब यह बात श्रीकृष्ण जी की दूसरी पत्नी सत्यभामा को पता चली तो वो क्रोधित हो गई और श्री कृष्ण जी से अपनी वाटिका के लिए पारिजात वृक्ष की मांग करने लगी।
श्री कृष्ण ने इंद्र देव को संदेश भिजवाया
श्री कृष्ण जी ने सत्यभामा को बहुत समझाया लेकिन श्री कृष्ण जी के बहुत समझाने पर भी सत्यभामा का गुस्सा शांत नहीं हुआ और वह उनसे बार-बार पारिजात वृक्ष की ही मांग करने लगी अंत में सत्यभामा की बात को रखते हुए श्री कृष्ण जी ने स्वर्ग लोक में इंद्र देव को पारिजात देने के लिए संदेश भिजवाया।
देवराज इन्द्र ने पारिजात देने से इंकार कर दिया
इंद्र जी तक जब यह संदेश पहुंचा तो उन्होने कृष्ण भगवान की इस मांग को पूरा नहीं किया और पारिजात वृक्ष देने से साफ मना कर दिया।
और फिर सन्देश श्री कृष्ण जी तक पहुंचा कि इंद्रदेव ने परिजात का वृक्ष देने से इनकार कर दिया है।
देवराज इन्द्र के पारिजात ना देने की वजह
भगवान श्री कृष्ण जी ने नारद मुनि जी से पारिजात वृक्ष लाने के लिए इंद्र देव को संदेश भिजवाया था।
तब नारद मुनि श्री कृष्ण जी के संदेश को लेकर इंद्रपुरी पहुंचे और इंद्र देव के पास जाकर श्री कृष्ण जी का संदेश सुनाया तो इंद्र देव ने परिजात को देने से मना कर दिया और उन्होंने यह बात मना करने का कारण भी नारद मुनि को बताया।
इंद्र देव ने नारद मुनि को बताया कि परिजात वृक्ष की 5 खास विशेषताएं हैं।
पहली विशेषता
इंद्र ने नारद मुनि से बताया कि पहली विशेषता यह है की भूतल पर परिजात का दर्शन और स्पर्श करके मनुष्य पृथ्वी पर ही स्वर्गलोक का फल उपलब्ध होता हुआ देख स्वर्गलोक की प्राप्ति के लिए उचित कर्म करना छोड़ देंगे।
दूसरी विशेषता
दूसरी विशेषता के बारे में इंद्र देव ने नारद जी को बताया कि यदि मनुष्य परिजात वृक्ष के गुणों का और उससे प्राप्त लाभों का सेवन करने लगेगा तो देवता और मनुष्य एक समान हो जायेंगे।
तीसरी विशेषता
तीसरी विशेषता बताते हुए इंद्र देव नारद जी को बोले की मृत्युलोक में जो शुभ कर्म करते हैं उसका फल स्वर्गलोक में आकर मिलता है परिजात के लाभ उन्हें पृथ्वी पर ही प्राप्त होने लगेंगे, तब वह स्वर्ग के लिए यत्न नहीं करेंगे।
चौथी विशेषता
चौथी विशेषता बताते हुए इंद्र देव नारद मुनि से बोले की परिजात स्वर्ग के सब रत्नों में श्रेष्ठ है यदि यह भूतल पर चला गया तो मनुष्यों और देवताओं में अंतर समाप्त हो जाएगा और सारा जगत स्वर्ग के समान हो जायेगा।
पांचवी विशेषता
पांचवी विशेषता बताते हुए इंद्रदेव ने नारद मुनि जी से कहा कि परिजात का लाभ मिल जाने पर यदि मनुष्यों को भूख प्यास नहीं सताएगी, रोग, बुढ़ापा, असंतोष अथवा मृत्यु की प्राप्ति नहीं होगी, उसमें दुर्गंध नहीं रहेगी तो स्वर्ग का क्या महत्व रह जायेगा।
इंद्र देव ने नारद जी को कहा इसलिए परिजात का मृत्युलोक में ले जाया जाना सर्वधा अनुचित है।
उन्होंने कहा कि वह इस वृक्ष पृथ्वी लोक पर नहीं जाने देंगे।
फिर क्यों ना इस बात के लिए किसी से भी युद्ध ही क्यों ना करना पड़े।
श्री कृष्ण ने इंद्र देव पर आक्रमण कर दिया
मना करने की बात सुनकर श्री कृष्ण जी बहुत क्रोधित हो गए और उन्होंने इंद्रदेव पर आक्रमण कर दिया।
युद्ध में श्री कृष्ण जी की जीत हुई और इंद्रदेव हार गए इसके बाद श्री कृष्ण भगवान परिजात का वृक्ष इंद्रदेव के बगीचे से ले आए।
पराजित होने पर इंद्र देव ने क्रोध में आकर परिजात वृक्ष में कभी भी फल ना आने का श्राप दे दिया। कथा के अनुसार यह माना जाता है कि इसी वजह से इस वृक्ष पर कभी भी फल नहीं उगते।
पारिजात वृक्ष पृथ्वी पर आया
वादे के अनुसार श्री कृष्ण जी ने पारिजात का वृक्ष लाकर सत्यभामा की वाटिका में लगवा दिया।
लेकिन उन्हें सबक सिखाते हुए ऐसा कुछ करा की जिसे रात में परिजात के वृक्ष पर पुष्प तो खिलते थे लेकिन गिरते थे उनकी पहली पत्नी रुकमणी की वाटिका में ही।
आज भी जब इस वृक्ष पर फूल खिलते हैं तो वह वृक्ष से थोड़ा दूर जाकर ही गिरते हैं।
पांडवों द्वारा लगाया गया
पुराण प्रेम सुख सागर के अनुसार अज्ञातवास भोग रहे पाण्डव माता कुंती के साथ उत्तरप्रदेश के बाराबंकी जिला के इसी गांव में आए थे।
यहां पर उन्होने अपनी माता कुंती के लिए एक शिव मंदिर की स्थापना की। श्रीकृष्ण जी के आदेश पर माता कुंती हेतु पाण्डव सत्यभामा की वाटिका से पारिजात वृक्ष को ले आए थे क्योंकि इस वृक्ष के पुष्पों से माता कुंती शिव पूजन करती थीं।
इस तरह से स्वर्गलोक से आया पारिजात वृक्ष इस गांव का हिस्सा बन गया।
पारिजात राजकुमारी की कथा
एक और मान्यता यह भी है की पारिजात नाम की एक राजकुमारी हुआ करती थी जिसे सूर्य भगवान से प्रेम हो गया था।
लेकिन लाख कोशिश करने के बाद भी सूर्य भगवान ने पारिजात के प्रेम को स्वीकार नहीं किया जिस से निराश होकर राजकुमारी पारिजात ने आत्महत्या कर ली।
जिस स्थान पर राजकुमारी पारिजात की कब्र बनी वहीं से इस परिजात नाम के वृक्ष ने जन्म लिया।
इसी वजह से रात के समय यह वृक्ष लगता है मानो रो रहा है और सुबह सूरज की रोशनी पड़ते ऐसा लगता है मानों खिलखिला उठा हो।
यादवों का कुल वृक्ष
इस बात का वर्णन श्री विष्णुपुराण के पंचम अंश के 31 वें अध्याय मैं लिखा है कि, “पारिजात वृक्ष को देखने जब सभी यादव लोग आए और इसके सामने खड़े होकर जब प्रणाम करा तो उन लोगों को यह अहसास हुआ की वह मनुष्य नहीं देवता हैं जो किसी निश्चित उद्देश्य को पूरा करने के लिए मनुष्य रूप में यदुवंश में जन्म लिया है”।
जिस प्रकार से यादवों के कुल देवता भगवान श्री कृष्ण जी हैं और कुल देवी माता विंध्यवासिनी हैं उसी प्रकार से यादवों का कुल वृक्ष पारिजात वृक्ष है।
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